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जिंदगी तेरे लिए

जिंदगी तेरे लिए

कभी खंडहरों में घुमा
कभी खो गया शहर में
कही पर रात रात जागा
तो कही सो गया सफर में
करता रहा हूं मैं हाय हाय
जिंदगी तेरे लिए।
माता पिता को भी सदा हमनें
इसी फिक्र में देखा है
इनकम उतनी ही है परिवार की
मगर बच्चे बढ़ने लगा है
क्या करें और क्या ना करें
जिंदगी तेरे लिए।
मैं ढूंढ रहा हूं कब से
मिल जाए कोई एक अच्छा मित्र
जो कीमत से नही सज्जनों
किस्मत से ही मिलता है
अच्छे दिन की आस में भटक रहा हूं
जिंदगी तेरे लिए।
कभी चला मैं संभलकर
कभी गिर गया राहों में फिसलकर
कही मिल गई तसल्ली तो
कही पर खाया मैं धोखा ही धोखा
अब तक मैं भटक रहा हूं इधर उधर
जिंदगी तेरे लिए।

नूतन लाल साहू

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3 Comments

Mohammed urooj khan

06-Feb-2024 12:49 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Milind salve

05-Feb-2024 12:37 PM

Nice

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Gunjan Kamal

05-Feb-2024 11:05 AM

👏👌

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